Diwali ka mausam kuchh aisa hota hai...

जब भागता हुआ सा दिन पकड़ नहीं आता है,
उँगलियों के बीच से खिसक जाता है,
गुलमोहर की छाँव में आँख-मिचोली खेलते हुए
शाम रोज़ थोडा और जल्दी आ जाती है
जब हवा कुछ नर्म सी होने लगे
और कुनकुनी धुप ओढ़ लो तो सुहाती है
तब सुबह अलसाई सी उठती है
और रात खिंचती ही चली जाती है
कभी खिड़कियों की धूल झाड़ते हुए, नए कपड़े पहन इतराती है.
बाजारों में रौनक अचानक बढ़ने लगती है
और रोशनी पूरे शहर को नहलाती है
रात के दो बजे भी अगर निकल पड़ो
कोई फूल, कोई मिठाई पुराने शहर में कहीं मिल ही जाती है
...कभी कभार ही तो ऐसा होता है
जब हजारों दीये जलता हैं, दिवाली आती है

Comments

Priyanka said…
the last line goes
जब हजारों दीये जलते हैं, दिवाली आती है

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